केंद्र और राज्य सरकार में क्या तालमेल की कमी है? क्या मंत्रालय और अफसर प्रधानमंत्री के आशय को ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं? आखिर राज्यों और केंद्र सरकार के बीच में दिशा-निर्देश में तालमेल न आने का कारण क्या है?
पूर्व विदेश सचिव शशांक का कहना है कि कहीं कुछ तो गड़बड़ है, “मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सार्वजनिक तौर पर आकर कह जाते हैं और इसके बाद अफसर उम्मीद करते हैं कि उनके लिए जो करना है, उसका आदेश अलग से आएगा।”
कोरोना से लड़ने में भी जारी है विरोधाभासी चाल
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी हों, आईसीएमआर या आईआईटी दिल्ली तालमेल का अभाव और विरोधाभास सामने आ रहे हैं। दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार, दिल्ली पुलिस का तालमेल भी इसी तरह के सवाल खड़े करता है। भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने भी अपने ट्वीट में इसे रेखांकित किया।
किंग जार्ज मेडिकल कालेज, लखनऊ या फिर लखनऊ का स्वास्थ्य मंत्रालय, उनके बीच और सरकारों के बीच में तालमेल की कमी उजागर हो जा रही है। इसके कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक को माफी मांगनी पड़ी।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नोएडा के डीएम को फटकार, गाजियाबाद में मुख्यमंत्री का कम समय तक रुकना इसी तरफ इशारा कर रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों का मानना है कि राज्यों के स्तर पर इंप्लीमेंट होने वाली चीजों में कुछ लापरवाही के कारण थोड़ा समय लग रहा है।
फिलहाल केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना पर शोध, अध्ययन और सक्रियता बढ़ाने के लिए डा. विनोद पाल की अध्यक्षता में एक समिति भी गठित की है।
गरीब, मजदूरों के पलायन से खुली पोल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू की अपील की थी। इसके बाद देश में 14 अप्रैल तक लॉकडाउन की घोषणा हो गई, लेकिन 27 मार्च से देश के कोने-कोने से प्रवासी मजदूर अपने गृह राज्य, जिले के लिए पैदल जाने लगे। 28 मार्च को दिल्ली के आनंद विहार में हजारों लोग इकट्ठा हो गए।
उत्तर प्रदेश समेत कुछ राज्यों की सरकारों ने बसों की सेवा उपलब्ध करा दी। पूर्व विदेश सचिव शशांक का कहना है कि जब कर्फ्यू लगा था, लॉकडाउन घोषित था, तो लोग पहुंचे कैसे? दिल्ली पुलिस ने कैसे जाने दिया? उपराज्यपाल और केंद्रीय गृह मंत्रालय ने संज्ञान क्यों नहीं लिया।
रविवार को जब प्रधानमंत्री ने मन की बात कार्यक्रम में माफी मांगी तब कहीं जाकर केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला का लोगों को रोकने, लॉकडाउन का सख्ती से पालन करने का निर्देश आया।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कुछ अफसरों को निलंबित किया। बड़ा सवाल है कि केंद्र सरकार और एजेंसियां, दिल्ली सरकार 36 घंटे से अधिक समय तक खामोश क्यों थीं?
बैंकों ने बाद में दी तीन महीने की ईएमआई में छूट
प्रधानमंत्री के मन की बात कार्यक्रम के बाद केंद्रीय वित्त मंत्रालय सक्रिय हुआ। लोगों के आयकर समेत अन्य को 30 जून तक फाइल करने का निर्णय बाद में आया। सरकारी बैंकों की तरफ से तीन महीने तक ईएमआई न लेने संबंधी पहल भी बाद में आई।
शशांक का कहना है कि किराएदारों के लिए उनके मकान मालिकों से जुड़ी अपील या सरकार की तरफ भरपाई की पहल भी बाद में आई। इतना ही नहीं, दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार, विभागों और अफसरों ने भी नहीं सोचा कि लॉकडाउन के बाद दिल्ली में रह रहे दिहाड़ी, गैर-पंजीकृत श्रमिक, कम आय वर्ग वाले लोग कैसे रहेंगे, क्या खाएंगे?
अब लोगों को भोजन बांटने का विज्ञापन भी खूब आ रहा है।
क्या पीएम जनता के लिए बोलते हैं, अफसरों के लिए नहीं?
केंद्र सरकार के अफसर का मानना है कि तालमेल में कुछ कमी तो रहती ही है। इधर थोड़ा ज्यादा महसूस हुई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि कुछ राज्य कोरोना के आंकड़े समय पर नहीं दे रहे हैं। इसके कारण मंगलवार को अचानक संक्रमितों की संख्या बढ़ गई।
हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल पूरी टीम के साथ लगातार सक्रिय हैं। बताते हैं मध्यप्रदेश में अचानक मुख्यमंत्री बदल जाने के कारण वहां से भी कुछ दिक्कतें आई हैं। क्योंकि सारा दारोमदार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, राज्य के मुख्य सचिव और नौकरशाही पर ही है।
इसी तरह से उत्तर प्रदेश सरकार के स्तर पर भी कुछ तालमेल में ऊंच-नीच की स्थिति पैदा हुई थी। पूर्व विदेश सचिव शशांक का कहना है कि विदेशों से लोगों का आना, अंतरराष्ट्रीय उड़ान, घरेलू उड़ान या घरेलू परिवहन व्यवस्था तब बंद हुई, जब स्थिति नाक पर चढ़ आई।
वह कहते हैं कुछ कमजोरियां तो रही हैं। ऐसा लगता है कि जैसे मंत्रालय, राज्य और अफसर मान लेते हैं कि अभी प्रधानमंत्री केवल जनता के लिए कह रहे हैं, उनके लिए नहीं।
चार-पांच दशक में यह दौर नहीं देखा
पूर्व विदेश सचिव का कहना है कि अब से पहले ऐसा दौर नहीं देखा। चार-पांच दशक तक तो केंद्र सरकार जो कहती थी, देश का प्रधानमंत्री जो कहता था, राज्य के लोग, अधिकारी सब उसके साथ जुड़ते चले जाते थे।
यह अब देखने में आ रहा है कि लोग जमात के साथ जुड़ रहे हैं। सरकार और देश के साथ वह जुड़ाव कम हुआ है। लोग हिन्दू, मुस्लिम, आरएसएस, कांग्रेस, भाजपा जैसे सवाल उठाने में व्यस्त रहते हैं। जबकि पहले ऐसा नहीं था।
सार
- केंद्र और राज्यों के बीच में समन्वय का अभाव
- मजदूरों, गरीबों का पलायन, बैंकों की ईएमआई, किरायेदारों पर सरकारी आदेश में देरी की वजह क्या है?
विस्तार
केंद्र और राज्य सरकार में क्या तालमेल की कमी है? क्या मंत्रालय और अफसर प्रधानमंत्री के आशय को ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं? आखिर राज्यों और केंद्र सरकार के बीच में दिशा-निर्देश में तालमेल न आने का कारण क्या है?
पूर्व विदेश सचिव शशांक का कहना है कि कहीं कुछ तो गड़बड़ है, “मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सार्वजनिक तौर पर आकर कह जाते हैं और इसके बाद अफसर उम्मीद करते हैं कि उनके लिए जो करना है, उसका आदेश अलग से आएगा।”
कोरोना से लड़ने में भी जारी है विरोधाभासी चाल
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी हों, आईसीएमआर या आईआईटी दिल्ली तालमेल का अभाव और विरोधाभास सामने आ रहे हैं। दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार, दिल्ली पुलिस का तालमेल भी इसी तरह के सवाल खड़े करता है। भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने भी अपने ट्वीट में इसे रेखांकित किया।
किंग जार्ज मेडिकल कालेज, लखनऊ या फिर लखनऊ का स्वास्थ्य मंत्रालय, उनके बीच और सरकारों के बीच में तालमेल की कमी उजागर हो जा रही है। इसके कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक को माफी मांगनी पड़ी।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नोएडा के डीएम को फटकार, गाजियाबाद में मुख्यमंत्री का कम समय तक रुकना इसी तरफ इशारा कर रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों का मानना है कि राज्यों के स्तर पर इंप्लीमेंट होने वाली चीजों में कुछ लापरवाही के कारण थोड़ा समय लग रहा है।
फिलहाल केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना पर शोध, अध्ययन और सक्रियता बढ़ाने के लिए डा. विनोद पाल की अध्यक्षता में एक समिति भी गठित की है।
गरीब, मजदूरों के पलायन से खुली पोल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू की अपील की थी। इसके बाद देश में 14 अप्रैल तक लॉकडाउन की घोषणा हो गई, लेकिन 27 मार्च से देश के कोने-कोने से प्रवासी मजदूर अपने गृह राज्य, जिले के लिए पैदल जाने लगे। 28 मार्च को दिल्ली के आनंद विहार में हजारों लोग इकट्ठा हो गए।
उत्तर प्रदेश समेत कुछ राज्यों की सरकारों ने बसों की सेवा उपलब्ध करा दी। पूर्व विदेश सचिव शशांक का कहना है कि जब कर्फ्यू लगा था, लॉकडाउन घोषित था, तो लोग पहुंचे कैसे? दिल्ली पुलिस ने कैसे जाने दिया? उपराज्यपाल और केंद्रीय गृह मंत्रालय ने संज्ञान क्यों नहीं लिया।
रविवार को जब प्रधानमंत्री ने मन की बात कार्यक्रम में माफी मांगी तब कहीं जाकर केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला का लोगों को रोकने, लॉकडाउन का सख्ती से पालन करने का निर्देश आया।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कुछ अफसरों को निलंबित किया। बड़ा सवाल है कि केंद्र सरकार और एजेंसियां, दिल्ली सरकार 36 घंटे से अधिक समय तक खामोश क्यों थीं?
बैंकों ने बाद में दी तीन महीने की ईएमआई में छूट
प्रधानमंत्री के मन की बात कार्यक्रम के बाद केंद्रीय वित्त मंत्रालय सक्रिय हुआ। लोगों के आयकर समेत अन्य को 30 जून तक फाइल करने का निर्णय बाद में आया। सरकारी बैंकों की तरफ से तीन महीने तक ईएमआई न लेने संबंधी पहल भी बाद में आई।
शशांक का कहना है कि किराएदारों के लिए उनके मकान मालिकों से जुड़ी अपील या सरकार की तरफ भरपाई की पहल भी बाद में आई। इतना ही नहीं, दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार, विभागों और अफसरों ने भी नहीं सोचा कि लॉकडाउन के बाद दिल्ली में रह रहे दिहाड़ी, गैर-पंजीकृत श्रमिक, कम आय वर्ग वाले लोग कैसे रहेंगे, क्या खाएंगे?
अब लोगों को भोजन बांटने का विज्ञापन भी खूब आ रहा है।
क्या पीएम जनता के लिए बोलते हैं, अफसरों के लिए नहीं?
केंद्र सरकार के अफसर का मानना है कि तालमेल में कुछ कमी तो रहती ही है। इधर थोड़ा ज्यादा महसूस हुई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि कुछ राज्य कोरोना के आंकड़े समय पर नहीं दे रहे हैं। इसके कारण मंगलवार को अचानक संक्रमितों की संख्या बढ़ गई।
हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल पूरी टीम के साथ लगातार सक्रिय हैं। बताते हैं मध्यप्रदेश में अचानक मुख्यमंत्री बदल जाने के कारण वहां से भी कुछ दिक्कतें आई हैं। क्योंकि सारा दारोमदार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, राज्य के मुख्य सचिव और नौकरशाही पर ही है।
इसी तरह से उत्तर प्रदेश सरकार के स्तर पर भी कुछ तालमेल में ऊंच-नीच की स्थिति पैदा हुई थी। पूर्व विदेश सचिव शशांक का कहना है कि विदेशों से लोगों का आना, अंतरराष्ट्रीय उड़ान, घरेलू उड़ान या घरेलू परिवहन व्यवस्था तब बंद हुई, जब स्थिति नाक पर चढ़ आई।
वह कहते हैं कुछ कमजोरियां तो रही हैं। ऐसा लगता है कि जैसे मंत्रालय, राज्य और अफसर मान लेते हैं कि अभी प्रधानमंत्री केवल जनता के लिए कह रहे हैं, उनके लिए नहीं।
चार-पांच दशक में यह दौर नहीं देखा
पूर्व विदेश सचिव का कहना है कि अब से पहले ऐसा दौर नहीं देखा। चार-पांच दशक तक तो केंद्र सरकार जो कहती थी, देश का प्रधानमंत्री जो कहता था, राज्य के लोग, अधिकारी सब उसके साथ जुड़ते चले जाते थे।
यह अब देखने में आ रहा है कि लोग जमात के साथ जुड़ रहे हैं। सरकार और देश के साथ वह जुड़ाव कम हुआ है। लोग हिन्दू, मुस्लिम, आरएसएस, कांग्रेस, भाजपा जैसे सवाल उठाने में व्यस्त रहते हैं। जबकि पहले ऐसा नहीं था।